जय जय कारी माता वसुधा
अष्टभुजा भगवती
दसो दिशा मे फैल रही है
अनुरूपा समिति ||धृ ||
वेद पुरातन परंपरा की
नवपल्लव शाखा
सत्यधर्मजयी कालभाल पर
सुभग लाल रेखा
नवीन युग के अरुणोदय की ज्योतिर्मय आरती ||1||
अबला नारी कभी न थी पर
जग ने मान लिया
सबला बनकर निज शक्ती का
जग को ज्ञान दिया
हमको अब तो करनी होगी
समाज मन जागृती ||2||
संस्कारो की नीव मातृ का
कुटुंब संबोधिनी
वीरप्रसवा जननी है हम
समाज संजीवनी
मनुज वंश की तारण करती
हम है भागीरथी ||3||
आखों के संमुख ध्येय हमारा स्थिर है अनुशासित मन मे समरसता का स्वर है
अब चले साथ में उभय करो मे ध्वज है
चाहे कितनी बाधाए हो जय मे हो परिणती ||4||