आज के युग मे महिलायें जीवन के सभी क्षेत्रों
में यशस्विता के अत्त्युच्च शिखर पर विराजमान होते हुए दिख रही है। कृषि क्षेत्र से
ले कर अंतरिक्ष तक; सैन्य से ले कर उद्योग जगत तक, महिलाये भारत के विकास मे अपना भरकस
योगदानदे रही है। यह तो हम सभी के लिये अत्यंत अभिमानास्पद है। किंतु इसी समय में महिलाओं
के उपर होने वाली अन्याय,अत्याचार की घटनायें बढ रही है। यह देख कर मन बहुत व्यथित
होता है। सामन्य नागरिक भी ऐसी घटनाओं से अस्वस्थ होते है। महिला सुरक्षा के अनेक तरह
से प्रयास जारी है । सुरक्षा दल अपनी ओर से प्रयत्नशील है। अनेक सेवा संघटन भी कार्यरत
है। फिर भी ऐसी घटनायें घटती ही है। ऐसे संदर्भ में इस विषय पर राष्ट्र सेविका समिति
की भूमिका एवं कार्य सब के संमुख आयें इस लिये यह एक प्रयास है।
भारत मे युगोंसे एक स्वस्थ समाज व्यवस्था विकसित
हुई है। किंतु जब जब यह प्रक्रिया कुंठितसी हुई तब समाज मे विकृतियां उभरने लगी। या
तो ऐसा कहना ठीक होगा कि हर कालखंड में कुछ समय के लिये दुष्ट शक्तियां उभर कर आयी
और समाज मे अनाचार, अधर्म का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसे कालखंड में स्त्री की ओर देखने की
समाज की दृष्टी बदल जाती थी। जिस समाज में स्त्री को विशेष स्थान दे कर गौरवपूर्ण दृष्टी
से देखा जाता था, उसी समाज मे उसे उपभोग्या मान कर उस का शोषण होता था। किंतु तब समाज
की सज्जन शक्ति संघटित होती थी, दुष्ट शक्तियां परास्त हो जाती थी और फिर से समाज जीवन
सुविहित रूप से चलने लगता था।
यह उत्थान और पतन का चक्र चलता आया है । आज के युग
में भी हमें यह देखने को मिलता है कि समाज में दुष्ट शक्ति और सज्जन शक्ति का संघर्ष
नित्य रूप से चल रहा है। इसे ध्यान मे ले कर ही वंदनीया लक्ष्मीबाई केळकरजी ने राष्ट्र
सेविका समिति की स्थापना की। वह चाहती थी कि महिला स्वयं ही सशक्त बनें और समाज की
दुष्ट शक्ति को पनपने न दे। इस दुष्ट शक्ति के अनाचार का वह शिकार न बनें । समाज के
हर व्यक्ति को सुसंस्कारित करने में स्त्री की प्रमुख भूमिका है । वह ठीक तरह से निभाने
के लिये उसे अपने आप को सुसज्ज बनाना है । और संघटित भी होना है।उन के विचारों से प्रेरित
समिति की सेविकायें देश में हर जगह कार्यरत है।
सुसंस्कृत समाज का यह लक्षण है कि महिला
सुरक्षित रहें। उस के सम्मान को ठेस ना पहुंचे। उस पर अत्याचार की घटना न घटे। किंतु
देश मे कभी कभी ऐसी घटना के बारे में हम सुनते है। जहां भी ऐसी घटना होती है, त्वरित
वहां सेविकायें पहुंच जाती है और संघटित शक्ति से अन्याय के विरोध में खडी हो जाती
है । सच कहना है तो ऐसी घटना न हो इस के लिये
ही समिति का प्रयास रहता है। यदि दुर्दैव से घट जाती है तो सेविकायें वहां अपने प्रयास
से उस महिला का जीवन फिर से सवांरने के लिये प्रयास करती है। फिर वह उन्नाव की घटना
हो या फिर बोडो और संथाल के बीच का संघर्ष हो। अभी अभी संदेशखली की घटना के तुरंत बाद
राष्ट्र सेविका समिति की कार्यकर्ता बहनें वहां पहुंच गयी थी। सभी महिलाओंका धीरज बढा
कर, अन्याय के विरोध मे चल रहे उन के संघर्ष को संबल देने का भी प्रयास सेविकाओंने
किया। जो महिलायें डरी हुई थी, सहमी हुई थी उन से आत्मीयता से बात कर के उन के हृदय
में छिपा हुआ दर्द समझने की कोशिश की। उन का धीरज बढाया। उन के आवाज को मुखरित करने
का प्रयास किया।
ऐसी घटनाओं का पहले से अनुमान लगाना बहुत
कठिन है। ऐसी दुर्घटनायें अकस्मिक ही होती है। फिर भी समिति त्वरित वहां पहुंचने काहरसंभव
प्रयास करती है। पिडित महिलाओंको सांत्वना मिले, न्याय मिले, उस का जीवन फिर से सामान्य
हो और अपराधियोंको कडी से कडी सजा मिले ऐसी समिति की भूमिका रहती है।
महिलाओंको, विशेषतः युवतियोंको आत्मसुरक्षा
का प्रशिक्षण देने के लियें भी समिति प्रयासरत है। इस मे कुछ आत्मसुरक्षा के प्रयोग
(नियुद्ध अर्थात कराटे), सतर्कता के प्रमुख बिंदु, आत्मविश्वास का संवर्धन जैसे विषय
सिखाये जाते है।
समाज में संस्कारों को वितरित करते हुए
महिला की ओर देखने की समाज की दृष्टी को बदलने का राष्ट्र सेविका समिति कानित्य प्रयास
चलता रहता है।
कानून के सामर्थ्य को अनदेखा नही किया
जा सकता। कडे कानून के कारण से समाज मे अपराधियों पर अंकुश तो लगता है। उन को सजा भी
मिलती है। आज महिला सुरक्षा के लिये पर्याप्त
कानून तो बने है। महिलाओंको घरेलु हिंसा से भी मुक्ति मिले इस लिये सरकार ने भी नये
नये कानून बनाये है। महिला को सशक्त करने के लिये बहुत सारी योजनायें भी बनती है। (कभी
कभी लगता है कि थोडा अधिक ही संतुष्टीकरण का प्रयास चल रहा है। कई ऐसे उदाहरण भी मिलते
है जहां इन कानूनों का दुरुपयोग भी होता है।)
समिति का यह विचार है कि केवल कानून बनाने
से या योजनायें बनाने से समाज मे बदलाव नही होता है। कानून तो आवश्यक है ही मगर सोच
मे जब तक बदलाव नही आता है तब तक महिला सुरक्षित नही हो सकती है। इस लिये समाज मे हर
व्यक्ति संस्कारित हो, ’मातृवत् परदारेषु’ यह दृष्टी सभी की हो इस लिये सभी को प्रयास
करने होंगे।
महिलाओं को स्वयं भी स्वसंरक्षणक्षम बनना पडेगा
। यहां स्व याने केवल व्यक्ति तक मर्यादित नही है। महिला को अपने आत्मसम्मान की, स्वसंस्कृति
की, स्वधर्म की, स्वराष्ट्र की रक्षा करने के लिये अपने आप को सक्षम बनाना पडेगा। अपने
परिवार में धर्म, राष्ट्र ऐसे विषयोंपर चर्चा हो, परिवार के आबालवृद्ध सभी लोगोंको
इन विषयों का ज्ञान हो ऐसा प्रयास होना चाहिये। समिति की यही भूमिका है की परिवार ही
समाज का प्रथम घटक है, इस लिये हर महिला को अपने परिवार को सुसंस्कारित कर के दिशा
दर्शन देना चाहिये। समाज की सारी सज्जन शक्ति को संघटित हो कर क्रियाशील भी बनेगी तो
सारी दुष्प्रवृत्तियां अपने आप ही नष्ट हो जायेगी। फिर कही भी महिलाओं के उपर अत्याचार
की घटना नही होगी।