यह भगवा राष्ट्र निशान फहरता प्यारा
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यह भगवा राष्ट्र निशान फहरता प्यारा
बरसता तेज पावित्र्य स्नेह की धारा||धृ ||
श्री विष्णू का ध्वजदंङ
दानवता जो उदंड
कर उसका खंड खंड
गरुड के साथ जो नभ में विहरा प्यारा ||1||
रक्तिमा अरुण संध्या का
दीप्त वर्ण अग्निशिखा का
यह तिलक भरतभूमीका
रिपु रुधिर-रंगसे रंजित है यह न्यारा||2||
यह असुरों का अंतक है
यह सुजनोंका पालक है
यह विनतोंका तारक है
श्री राम कृष्ण रणचंडी दुर्गा काली का फिर न्यारा ||3||
विक्रमने इसे चढाया
चंद्रगुप्त ने भी बढाया
श्री अशोकने फहराया
शक हूण ग्रीक और म्लेंच्छ हटाकर भरत भूमी को तारा ||4||
सम्मान समर्थ शिवा का
रजपूत जैन सिखों का
अभिमान यह मराठों का
दिल्ली के तक्तपर घणाघात कर अटक नदीतक लहरा ||5||